आंवला की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Gooseberry Farming in Hindi)
किसान भाइयों आंवला को अमर फल भी कहा जाता है। मुरब्बा,अचार,सब्जी, जैम, जैली, त्रिफला चूर्ण, च्यवनप्राश, अवलेह, शक्तिवर्धक औषधियों सहित अनेक आयुर्वेदिक औषधियों तथा केश तेल, चूर्ण, शैम्पू आदि के उत्पादन में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कहने का मतलब इस फल की व्यापारिक खेती करके अच्छी कमाई की जा सकती है।आइये जानते हैं आंवला की खेती कैसे करें |
मिट्टी एवं जलवायु
किसी भी प्रकार की मिट्टी में आंवला की खेती की जा सकती है। लेकिन बलुई भूमि से लेकर चिकनी मिट्टी तक में आंवले को उगाया जा सकता है। गहरी उर्वरा बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। लेकिन आंवला को ऊसर, बंजर एवं क्षारीय जमीन पर भी लगाया जा सकता है। किसान भाइयों आंवला की खेती पीएम मान साढ़े छह से लेकर साढ़े नौ मान वाली मृदा में अच्छी तरह से की जा सकती है। आंवला की खेती समशीतोष्ण जलवायु वाली जगह पर अच्छी होती है। जहां पर अधिक सर्दी और अधिक गर्मी न पड़े, वहां पर आंवला की खेती में अच्छी पैदावार होती है। आंवला के पौधों की बुआई के समय सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। आंवला के पौधों की बढ़वार के लिए गर्मी के मौसम की आवश्यकता होती है । आंवले का पौधा शून्य डिग्री तापमान से 45 डिग्री तक तापमान सहन कर सकता है। लेकिन पाला इसके लिए हानिकारक है।
खेत की तैयारी कैसे करें
आंवला के पौधे को लगाने से पहले खेत को काफी अच्छे तरीके से तैयार करना होता है। खेत को रोटावेटर से जुताई करके मिट्टी पलटनी चाहिये। उसके बाद खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिये ताकि सूर्य के प्रभाव से दीमक आदि कीटों का उपचार हो सके। बाद में खेत की जुताई करके और पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये। इसके बाद पौधों को लगाने के लिए गड्ढों को तैयार करना चाहिये। पथरीली भूमि हो तो गड्ढे में आने वाली कंकरीली परत अथवा कंकड़ आदि को हटा देना चाहिये। यदि ऊसर भूमि में खेती कर रहे हों तो ऊसर भूमि में बुवाई से एक माह पहले 8 मीटर के आसपास गड्ढों की खुदाई कर लेनी चाहिये। गड्ढे 1 से 1.5 मीटर की लम्बाई चौड़ाई वाले होने चाहिये। लाइन से लाइन की दूरी भी 8-10 मीटर की होनी चाहिये। एक सप्ताह तक खुले छोड़ने के बाद सामान्य भूमि के प्रत्येक गड्ढे में लगभग 50 किलोग्राम गोबर की खाद, नाइट्रोजन 100 ग्राम, 20-20 ग्राम फास्फोरस और पोटाश देना चाहिये। इसके साथ ही 500 ग्राम नीम की खली व 150 ग्राम क्लोरोपाइरिफास पाउडर मिलाकर गड्ढे को 10 से 15 दिन के लिए खुला छोड़ दें। उसके बार किसी अच्छी नर्सरी से पौध लाकर उसमें रोपाई करें।
पौधे कैसे तैयार करें
आंवला के पौधे बीज और कलम दोनों ही तरीके से तैयार किये जा सकते हैं। कलम के माध्यम से पौध तैयार करना उत्तम माना जाता है। नर्सरियों से अच्छे किस्म के पौधों की कलम मिल जाती है। आंवले की पौध को भेट कलम एवं छल्ला विधि से भी तैयार किया जाता है। बीज से पौध तैयार करने के लिए सूखे फलों से बीज निकाल कर 12 घंटे तक गोमूत्र या बाविस्टिन के घोल में डुबा दिया जाता है और उसके बाद बीजों को नर्सरी में पॉलीथिन में उर्वरक और मिट्टी मिलाकर रख दिया जाता है। बीजों से जब अंकुर निकलने लगते हैं तब जरूरत के समय उन्हें खेत में बने गड्डों में रोप दिया जाता है। पौधों की रोपाई का समय और विधि ।यह भी पढ़ें: आंवला से बनाएं ये उत्पाद, झटपट होगी बिक्री
आंवला के पौधों को लगाने का सबसे सही समय जून से लेकर सितम्बर तक होता है। इसलिये खेत यानी गड्ढों को मई में ही तैयार कर लेना चाहिये। जून में जब आपकी पौध तैयार हो जाये तो एक महीने पहले से तैयार गड्ढों में पौध को रोप देना चाहिये। गड्ढों में पिंडी की साइज का एक छोटा गड्ढा तैयार कर लेना चाहिये। पौधों को रोपते समय पिंडी पर लगायी गयी पॉलिथिन या पुआल को हटा देना चाहिये। छोटे गड्ढे में पौधों को रोपने के बाद चारों ओर की मिट्टी को खुरपा के बेंट या अपने हाथों से अच्छी तरह से दबा देना चाहिये। उसके बाद हजारा से हल्की सिंचाई करनी चाहिये। किसान भाइयों पौधों को लगाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि एक खेत में एक किस्म के पौधे न लगायें।
सिंचाई का प्रबंधन
किसान भाइयों आंवला के पौधों को शुरुआत में ही सबसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है। पौधों की रोपाई के साथ ही पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिये। इसके बाद गर्मियों में प्रत्येक सप्ताह और सर्दियों में 15 दिन के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिये। वर्षा के मौसम में यदि बरसात न हो तब पानी देने का प्रबंध करना चाहिये। पौधा बड़ा हो जाये तब महीने में एक बार ही सिंचाई की जरूरत होती है। जब कलियां आने लगें तभी से सिंचाई बंद कर देनी चाहिये अन्यथा फूल फल बनने से पहले ही झड़ कर गिर सकते हैं। पैदावार कम हो सकती है।उर्वरक व खाद प्रबंधन
आंवले की खेती के लिए पोषक तत्वों को नियमानुसार दिया जाना चाहिये। पौधों की रोपाई से पहले गड्ढे को करते समय खाद दिये जाने के बाद एकवर्ष पूरा होने पर प्रत्येक पौधे को 5 किलो गोबर की खाद, 100 ग्राम पोटाश, 50 ग्राम फास्फोरस और 100 ग्राम नाइट्रोजन दिया जाना चाहिये। इन सभी खाद व उर्वरकों की मात्रा को प्रत्येक वर्ष एक गुना बढ़ाते रहना चाहिये। जैसे पहले वर्ष में आपने गोबर की खाद 5किलो डाली, तो दूसरे वर्ष 10 किलो और तीसरे वर्ष 15 किलो देनी चाहिये। इसी तरह से अन्य उर्वरकों की मात्रा को बढ़ाना चाहिये जैसे फास्फोरस को 50 ग्राम से बढ़ा कर 100 ग्राम और 150ग्राम कर देना चाहिये। पोटाश और नाइट्रोजन की मात्रा को 100-100 ग्राम से बढ़ाकर 200 और 300 ग्राम कर देनी चाहिये। खाद और उर्वरक देने का क्रम दस वर्ष या उससे अधिक समय तक बनाये रखना चाहिये।यह भी पढ़ें: ऐसे करें असली और नकली खाद की पहचान, जानिए विशेष तरीका
खाद डालने के लिए समय का भी किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिये। जनवरी माह में फूल आने से पहले गोबर, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा डाल देनी चाहिये जबकि नाइट्रोजन की आधी मात्रा डाली जानी चाहिये। नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा को जुलाई व अगस्त माह में डालनी चाहिये। यदि मृदा क्षारीय है तो उसके खाद में 100 ग्राम बोरेक्स यानी सुहागा के साथ जिंक सल्फेट और कॉपर सल्फेट 100-100 ग्राम मिलाना चाहिये। आंवले की खेती में खाद, उर्वरकों के अलावा जैविक खाद भी दिये जाने से फल की गुणवत्ता काफी अच्छी हो जाती है। प्रत्येक पौधे को 1 किलो केंचुए की खाद डालने के बाद केले के पत्तों और पुआल से पलवार करने से काफी अच्छी फसल मिलती है।
पेड़ों की कटाई-छंटाई तथा निराई
आंवला के पौधों को एक मीटर तक बढ़ने के बाद कटाई-छंटाई करना चाहिये ताकि पौधों की बढ़वार सीधी न होकर घने वृक्ष की तरह हो ताकि अधिक फल लग सकें। पौधों की समय-समय पर निगरानी करते रहना चाहिये। सूखे व रोग ग्रस्त पौधों को निकाल कर बाहर करते रहना चाहिये। खरपतवार को नियंत्रण के लिए पौधों की रोपाई के बाद उनकी निगरानी करते रहना चाहिये। एक साल में सात या आठ बार निराई-गुड़ाई करने से जहां खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है वहीं पौधों को विकास के लिए आवश्यक ऑक्सीजन जड़ों को मिल जाता है।यह भी पढ़ें: गर्मियों में ऐसे करें पेठा की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल
कीट व रोग प्रबंधन
आंवला में फल लगने के समय कई रोग व कीट लगते हैं। इनका नियंत्रण करना जरूरी होता है। लगने वाले रोग व कीट इस प्रकार हैं:-
- काला धब्बा रोग: आंवला के फलों पर काले धब्बे का रोग लगता है। इस रोग के लगने परआंवला के फलों पर गोल-गोल काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग को देखते ही पौधों की जड़ों व पौधे पर बोरेक्स का छिड़काव करना चाहिये।
- छाल भक्षी कीट: यह कीट पौधे की शाखाओं के जोड़ में छेद बनाकर रहते हैं। इनके लगने से पौधों का विकास रुक जाता है। इसलिये इस कीट के हमले को देखने के बाद किसान भाइयों को पौधों के जोड़ों पर डाइक्लोरवास को डाल कर छेदों को मिट्टी से बंद कर देना चाहिये।
- कुंगी रोग: इस रोग के लगने से फलों व पत्तियों पर लाल रंग के धब्बे दिखने लगते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए इंडोफिल एम-45 का छिड़काव पेड़ों पर करना चाहिये।
- गुठली छेदक कीट: यह कीट सीधे फल पर हमला करता है। इसका लार्वा फल और उसकी गुठली को नष्ट कर देता है। इस कीट पर नियंत्रण के लिए किसान भाइयों को चाहिये कि वे पौधों पर कार्बारिल यामोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करें।
- फल फफूंदी रोग: यह रोग भी कीट के माध्यम से लगता है। इस रोग के लगने से फल सड़ने लगता है। इसके नियंत्रण के लिए पौधों पर एम-45 साफ और शोर जैसी कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिये।